फुल की उस खुसबू को फिर से
मेहसूस करना चाहता था ,
जो कभी मैंने तेरे जुल्फों में पायी थी
पर आज उसे में फिर से मेहसूस कर नहीं पाया ।
तेरा उन नरम और कोमल हाथोंं को
पकड़ कर खुद के रुक्शार् पर यूँ
प्यार से लगाना आज तक मे भुला नहीं पाया
पर आज उसे याद करके भी जाने याद कर नहीं पाया ।
वो जो नीदं मुझे तेरी गोद में आती थी
वो जो सुकून मुझे तेरी बाहों में मिलता था
आज वो सुकून में चाहकर भी
इस नादान माशूम से दिल को दे नहीं पाया ।
रात को तेरे साथ यूँ देर तक
बात करके जो चेन से सो जाता था में
आज तेरे बगैर जल्दी सो कर भी
वो चेन मेरी ये आँखों को दे नहीं पाया ।
उन ठंडी मध्ध्म सी हवाओं को
हमेशा प्यार से छूता था में
जो तेरी हर एक साँस को छू कर आती थी
पर जाने क्यूँ आज उन हवाओं के करीब
होते हुए नहीं उन्हे छू नहीं पाया ।
तेरा साया हमेशा चलता था
मेरे साये के साथ
तेरा चेहरा हमेशा रहता था
मेरी आँखों के पास
पर जाने क्यूँ आज उस चेहरे को आज में देख नहीं पाया ।
अब बहोत हुई ये घड़ी इंतजार की
डराता हूँ की कहीं में पायाब हो न जाऊ ।
अब चाहता हूँ की तेरे पास आकर
हमेशा के लिए रुक जाऊ ।
अपने सारे गमो को, दुःखो को
तेरे दामन मे कहीं छुपा जाऊ ।
चाहता हूँ की बस तेरे ध्वार पे आके में
तेरे घर के उस दरवाजे की साकल को
उतार कर तुझसे मिलकर तुजमे मिल जाऊ
और , बस खुद-को कहीं भूल जाऊ
बस खुद-को कहीं भूल जाऊ
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